गोरखपुर पहुंचे लद्दाख के आर्यन वैली के आठ बाशिंदे, सिकंदर के सैनिकों के हैं वंशज

गोरखपुर पहुंचे लद्दाख के आर्यन वैली के आठ बाशिंदे, सिकंदर के सैनिकों के हैं वंशज


समुद्र तल से करीब 15 हजार फीट उंचाई पर बसती है एक अलग दुनिया। इसे आर्यन वैली कहते हैं। यहां रहने वाले खुद को महान यूनानी सम्राट सिकंदर के सेनापति मकस्पून का वंशज मानते हैं। इस गांव के आठ बाशिंदे इन दिनों महानगर में हैं। वह महानगरवासियों को अपनी संस्कृति और सभ्यता से रूबरू करा रहे हैं। 


महानगर के प्रतिष्ठित जीएन नेशनल पब्लिक स्कूल में सोमवार को आर्यन वैली से श्रींग लामचुंग, ताशी पाल्दन, जल्सन दोर्जे, श्रींग डडूल, श्रींग दोर्जे, ताशी डोल्कर, पद्मा आंगमो और श्रींग डोल्कर पहुंचे हैं। इसकी अगुआई श्रींग दोर्जे कर रहे हैं। यह दल पूर्वांचलवासियों को आर्यन वैली की सभ्यता से रूबरू कराएगा।  


पांच गांव भारत में और दो हैं पाकिस्तान में 
श्रींग दोर्जे ने बताया कि करीब ढाई हजार साल पहले भारत से लौट रही सिकंदर की सेना के कुछ सिपहसलार परिवार के साथ लेह के आर्यन वैली में ही बस गए।  वैली के निवासी ही शुद्ध आर्य माने जाते हैं। इन निवासियों के खून का संबंध जर्मनी के निवासियों से है। यह सात गांव में बसे हैं। इनमें से दारचिक, गोरकोन, दाह, बीमा और हानू भारत में हैं। जबकि सीमा पार पाकिस्तान में दो गांव है। भारतीय हिस्से के निवासी बौद्ध धर्म को मानते हैं जबकि पाकिस्तानी सीमा में इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया है। 


आधुनिकता से दूर सभ्यता को संजोए हैं आर्यन
टीम में सबसे बुजुर्ग ताशी पाल्दन ने बताया कि आर्यन वैली के गांव आधुनिकता से दूर है। यहां की मूल भाषा शिना है। लेह से गांव तक पहुंचने में छह से आठ घंटे का कठिन सफर करना पड़ता है। गांव में बकरी और भेड़ ही मुख्य पशु हैं। बकरी और भेड़ के फर से बने छकोस ही मुख्य पहनावा है। निवासियों की टोपी(खोह) भी बकरी के फर से बनती है। देश में सिर्फ यहीं पर विशेष फूल मूंडवों मिलता है। इसके अलावा यह फूल जर्मनी में पाया जाता है। इस फूल दो साल तक नहीं मुर्झाता। सात साल तक फूल का रंग नहीं उड़ता।


कारगिल की जंग के बाद आया सुर्खियों में
श्रींग डडूल ने बताया कि कारगिल की जंग के बाद आर्यन वैली चर्चा में आया। यह बटालिक सेक्टर से सटा है। अब जाकर गांव में बिजली पहुंची। लोगों की आय का मुख्य साधन चिलगोजा की खेती, सेना को रसद आपूर्ति व बार्डर रोड आर्गनाइजेशन में मजदूरी से मिलता है। गांव में कोई बीमार नहीं पड़ता है इस वजह से डॉक्टर या वैद्य नहीं है। स्कूल अब जाकर खुला है। 


संघ शासित प्रदेश बनने के बाद खुश हैं आर्यन
श्रींग डोल्कर और ताशी डोल्कर ने बताया कि लेह को लंबे समय से संघ शासित प्रदेश बनाने के लिए आंदोलन चलाया जा रहा था। अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद सरकार ने संघ शासित प्रदेश बनाया है। उम्मीद है कि अब विकास की रफ्तार तेज होगी। 


गोरखपुर से जुड़ा है लेह
पूर्वांचल से लेह का सीधा संबंध है। महानगर के प्रतिष्ठित जीएन नेशनल पब्लिक स्कूल की ने लेह में भी शाखा खोली है। स्कूल के प्रबंधक जीपी सिंह ने बताया कि लेह में स्कूल संचालन के दौरान आर्यन वैली की जानकारी हुई। वैली में रहने वालों से संपर्क किया गया। उन्हें आमंत्रित किया गया। गंगा के मैदान और हिमालय के लेह के वातावरण व तापमान में अंतर है। इसके बावजूद पूर्वांचलवासियों को प्राचीन संस्कृति की जानकारी देने के आठ लोगों कादल तैयार हो गया।